निर्भीक पथिक= सदा विजय निर्भीक पथिक कंटक पथ पर बढ़कर संत्रस्त नहीं होता है , क्षुदा भी उसका करती क्या ? जब वह लक्ष्य साध लेता है , कंटक पथ परवर्तित हो जाता है फूलों की पंखुड़ियों में , सदा विजय नतमस्तक होती है , उस नर के चरणों में ॥1॥ लक्ष्य वृहद हो या लघु हो , धैर्य कभी नहीं कम होता है , वाद क्षेत्र में यदि घिर जाने पर , प्रतिवाद कभी नहीं कम होता है , स्पर्श न करती निराशा उसको , विषम क्षण की घड़ियों में , सदा विजय नतमस्तक होती है , उस नर के चरणों में ॥2॥ हार विजय में परिवर्तित होकर गले में हार डाल देती है , बढ़कर वह उस मानव के हित नव पुरुषार्थ भैट देती है , पुरुषार्थ की आग उभर आती है , उसकी धमनियों में , सदा विजय नतमस्तक होती है , उस नर के चरणों में ॥3॥ पथ पर रखता है जब वह पग , लक्ष्य की ही प्रत्याशा में , लक्ष्य-लक्ष्य ही देखे वह , जब विजय की ही अभिलाषा में , विजय खोलती अवरुद्ध मार्ग को , जुड़ता इतिहास की कड़ियों में सदा विजय नतमस्तक होती है , उस नर के चरणों में ॥4॥
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